Wednesday 5 September 2012

यहां "फरियाद" केवल सुनी जाती है................


यहां "फरियाद" केवल सुनी जाती है................
लोगों की फरियाद सुनने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्रीयों द्वारा जनता दरबार चलाने की कवायद  की जा रही है ऐसी एक कवायद इस बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी शुरू की है । विजय बहुगुणा भी सप्ताह में एक बार खुद लोगों की फरियाद सुन कर उनका निवारण करेगें।जनता दरबार से अभिप्राय उस दरबार से है जिसमें लोगों की फरियादों को मुख्य रूप से मुख्यमंत्री से लेकर बड़े औहदे के मंत्री सुनते है और उनका निवारण करते हैं।
राजाओं महाराजाओं के शासन काल में भी इसी तरह प्रजा की फरियादों को सुन कर उनका निवारण किया जाता था ठीक वैसे ही यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी लखनऊ में अपना जनता दरबार लगाया हुआ है, जिसमें अखिलेश यादव राजा होते हैं और बाकी के मंत्री ठीक उसी राजा की तरह वे भी लोगों की फ़रियाद को सुनते हैं। फ़रियादी दूर दराज़ से अपनी अपनी फ़रियादों को लेकर राजा अखिलेश  के सम्मुख उपस्थित होते है ताकि उनकी फरियाद को सुनकर उस पर कोई कार्यवाही की जा सके लेकिन इस दरबार के राजा अखिलेश के द्वारा चलाए जा रहे जनता दरबार का कोई खासा परिणाम देखने को नही मिल रहा है क्योंकि यहां केवल लोगों की फरियादों को सुना जाता है उन पर गौर या किसी तरह की कार्यवाही नही की जाती क्योंकि यहां के मंत्रियों को आराम फरमाने से ही फुर्सत नहीं है वे उस पर कार्यवाही क्या ख़ाक करेंगे ?

यह तस्वीर है प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ग्रहजनपद इटावा की जो वहां पर "अफ़सरशाही" को बयां करती है जहां काम के वक्त सरकारी आला अधिकारी आराम फरमाते नजर आते हैं  ये नजारा सेवा आयोजन के कार्यालय का है जहां जनता के कार्यो का निपटारा करने के बजाए ये महाशय आराम फरमाते दिखाई दे रहे है इस कार्यालय के बाहर बेरोज़गारी भत्ते के लिए लोग अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं जबकि ये सरकारी बाबू मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के राज में आराम फरमा रहे है।  
शिक्षक दिवस के दिन राजा अखिलेश के "जनता का दरबार" का तीसरा दिन था जिसमें हजारों शिक्षक तबादले की फ़रियाद को लेकर दरबार के राजा के पास पहंचे। लेकिन ताजुब की बात तो ये थी कि इस तीसरी बार के जनता दरबार में वो लोग भी मौजूद थे जो पहले और दूसरे जनता दरबार में भी अपनी फरियाद को लेकर अखिलेश के सामने हाजिरी लगा चुके है और हर बार इसी उम्मीद में आते है कि शायद इस बार उनकी बांतो को सुन लिया जाए या इस बार हमारी समस्या का निराकरण हो सके। ऐसे लोगो के साथ हजारों की संख्या में शिक्षक भी दिखें जोकि तबादले की फरियाद  लेकर जनता दरबार में मौजूद थे।
इन शिक्षकों की मांग हे कि महिला शिक्षक की तरह पुरूषों का भी तबादला किया जाए। तो वही महिला शिक्षकों की मांग है कि उनके जूनियर्स का तबादला हो गया लेकिन हम वही के वही है और हमारी इस मांग को सुन कर भी अनसुना किया जा रहा है।
ये है उत्तरप्रदेश का हाल जहां एक और तो लोगों की समस्याओं का निराकरण करने के लिए बड़े बड़े दावों के पुलिंदे बाँधे जाते है वही दूसरी ओर राजा के दरबार में फरियादियों की अभी तक इतनी भीड़ उमड़ी हुई है कि लोग अपनी समस्याओं को लेकर दरबार में मौजूद हैं ताकि उनकी समस्याओं का निराकरण खुद मुख्यमंत्री कर सकें। लेकिन जब तक आला अधिकारी इसी तरह से आराम फरमाते रहेंगे इस प्रकार के किसी भी जनता दरबार का कोई औचित्य नहीं है।
अंकुर पांचाल

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