Friday 31 August 2012

जीत अधूरी ना रह जाये.........
















अंडर 19 वर्ल्डकप में भारत ने आस्ट्रेलिया को रौंद कर तीसरी जीत दर्ज की है। पहला अंडर 19 वर्ल्ड कप 2002 में मोहम्मद कैफ की अगूवाई में जीता गया था। उसके बाद अंतराष्ट्रीय टीम में खेल रहे विराट कोहली की कप्तानी  2008 में भारत नें अपना परचम लहराया था।जीत की हैट्रिक को बरकार रखने की जिम्मादारी इस बार दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़ रहे कप्तान उनमुक्त चंद के कंधों पर थी। इस नौजवान ने मिली इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और भारत के सिर पर अंडर 19 वर्ल्ड कप का ताज संजोया। लेकिन जिस खेल की वजह से आज उनमुक्त को इतनी बढ़ी पहचान मिली है वही खेल खेलना शायद अंडर 19 वर्ल्ड कप में भारत को तिबारा जीत दिलाने वाले इस नौजवान को मंहगी पड़ रही है। क्योंकि अधिकतर समय अपने खेल में व्यस्त रहने के कारण उनमुक्त चंद अपनी उपस्थिति पूरी नहीं कर पाये जिसके कारण इस खिलाडी पर कॉलेज का एक साल बर्बाद होने का खतरा मंडरा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार विधार्थी को अकादमिक सत्र में सभी छूट के बाद कम से कम अपनी 33.3 फीसदी उपस्थिति पूरी करनी पड़ती है लेकिन अपने खेल में बिजी रहने के चलते वो यह अर्हता पूरी नही कर पायें जिसके कारण उनका एक साल बर्बाद हो सकता है हालांकि यह फैसला अभी कोर्ट में है लेकिन कॉलेज के प्रचार्य विल्सन थंपू का कहना है कि यह फैसला कॉलेज के प्रशासन को करना है क्योंकि यह विश्वविद्यालय का नियम है।  गौरतलब है कि एक बार पहले भी मई में होने वाली दूसरी सेमेस्टर की परीक्षा में भी उनमुक्त को एडमिट कार्ड नही दिया गया गया था जिसके बाद कोर्ट के हस्तक्षेप करने के उपरांत उन्हें परीक्षा देने की अनुमति मिली था हालांकि जब तक यह आदेश आया तब तक दो परीक्षा हो जाने के कारण वह उन विषयों की परीक्षा देने से वंचित रह गये।
इस  बार भी कुछ ऐसी परेशानियों का सामना इस उभरते खिलाड़ी को करना पड़ रहा है। हांलाकि उनमुक्त ने कहा है कि उनके खेल शिक्षक और कॉलेज के प्राचार्य अगले सेमेस्टर में उनकी मदद के लिये तैयार हैं। वहीं खेल मंत्री अजय माकन ने भी इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की इनका कहना है कि ऐसा करना बिल्कुल गलत है ऐसे खिलाड़ी को परीक्षा से रोकने की बजाय उसके लिए कोई दूसरा हल निकालना चाहिए था और यह बिल्कुल सत्य भी है अगर इस तरह के खिलाडियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता रहेगा तो आने वाले समय के खिलाडियों को अपनी उपस्थिति की और ज्यादा तथा अपने खेल के प्रति कम ध्यान जाएगा जिसका खामियाजा विभिन्न खेलों को भुगतना पड़ेगा क्योंकि जब प्रतिभाशाली खिलाड़ी ही नहीं होंगे तो खेलों का महत्व और सभी खेलों से रोमांच ही खत्म हो जायेगा यह बात केवल एक ही खेल क्रिकेट पर लागू नही होता बल्कि यह सभी खेलों पर लागू होती है क्योंकि आज भारत का नाम केवल पढ़ाई या किसी और क्षेत्र में ही अव्वल नहीं है बल्कि खेलों के माध्यम से भी भारत को शीर्ष स्थान पर गिना जाता है।
अंकुर पांचाल 

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